उत्सवका प्रारंभ 3 ॐ, शान्ति पाठ एवं गुरु स्तवन के साथ हुई। विवेकानन्द केन्द्र मे चल रहे
आनन्दालया एवं छात्रावास के बच्चो द्वारा भजन के भाव पूर्ण वातवरण निर्मिति के बाद मंदिर के पुजारी मा.श्री शंभुप्रसादजी द्वारा हमारी संस्कृतिमे सहस्त्राब्दीयों से चली आ रही गुरु-शिष्य परंपरा का अपने अस्खलित वाणी एवं मंत्रो द्वारा बताया। ऋषिकेशके राधाकृष्णा आश्रमसे शिमलामे चतुर्मासके लिए रुके हुए महात्माश्री नारायणस्वरुप ब्रह्मचारी ने कृष्ण और स्वामी विवेकानन्दके जीवन की घटनाओं के माध्यमसे गुरु-शिष्य के दृष्टांत दिए। उन्होने बताया की मा द्वारा ही हर एक मनुष्य जीवनका पहला पाठ पढ़ता है, और वच्चेको संस्कार अपने घर- मा-बाप से ही मिलता है। इसी लिए हम बडो का कर्तव्य है कि हम सद्साहित्य, सद्विचार एवं सदआचरण करे तभी अपने भावि पीढीमें नचिकेता, ध्रुव, प्रहलाद, शिवाजी, विवेकानन्द का अवतरण होंगा।
विवेकानन्द केन्द्र के जीवनव्रती संगठक हार्दिकजी ने, शिमला शाखा की गतिविधिओंका संक्षेप्तमें विवरण देते हुए, कहा की स्वामी विवेकानन्द द्वारा कहा गया ॐ का मंदिर -मिलन स्थलमें हम सहभागिता लेते हुए समाज को संगठीत करे और सकारत्मक समाज बनायें, उन्होंने लोगो को प्रार्थना, योग, स्वाध्याय प्रवृतिमें भाग लेने हेतु आमंत्रित करते हुए "भगिनि निवेदीता पुस्तकालय" और केन्द्र मे चल रहे आनन्दालय, (play way learning) के बारे में जानकारी दी।
इस अवसर पर नाभा विस्तारके पार्षद मा. शशीशेखरजी उपस्थित रहे और कार्यक्रमके आखिर में लोगोको मार्गदर्शन करते हुए बताया की हमे अच्छा मनुष्य बनना है, और सभी भेदभाव से उपर उठते हुए, अपने समाज के लिए कार्य करने के लिए आगे आना है। बच्चोको अच्छा मनुष्य - महान विचार वाले बनाने हेतु हम खुदतो विवेकानन्द केन्द्र जाये साथ में अपने बच्चे को नियमित रुप से भेजें।
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