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मंगलवार, 29 मार्च 2016

गुरु पूर्णिमा उत्सव : शिमला

विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी शिमला शाखा द्वारा गुरु पूर्णिमा का उत्सव दिनांक ३१-जुलाई, शनिवार सुबह ११ बजे, राजकीय महाविद्यालय संजौली, शिमला मे मनाया गया।
उत्सवका प्रारंभ 3 ॐ, शान्ति पाठ एवं मंगलाचरण और सरस्वति वंन्दना के साथ विवेकानन्द केन्द्र के विवेक छात्रावास के छात्र शिवमजी , सुरेश जी और तिलक जी के द्वारा हुअा, तथा कार्यक्रम का संचालन अन्य छात्र हिम्मत के द्वारा किया गया । विवेकानन्द केन्द्र शिमला के व्यवस्था प्रमुख श्री राजीव कुठियाला जी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना दी गयी।
इसके पाश्चात कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. ओमकार सारस्वत जी, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय मे हिन्दी के प्रोफेसर,  स्वामी विवेकानंद के कोटेशन के साथ हमारी संस्कृति का गुरु-शिष्य परम्परा की जो संकल्पना है उसकी  अंतर्दृष्टि  दी और उसका महत्व बताया

महाविद्यालय की उप-प्रधानाचार्य डा. निवेन्दु शर्मा, कार्यक्रम की अध्यक्ष ने भी सभी को संबिधित करते हुए गुरु शिष्य परंपरा तथा स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों को सब के समक्ष रखा

विवेकानन्द केन्द्र के जीवनव्रती संगठक कल्पना जी ने, शिमला शाखा की गतिविधिओंका संक्षेप्तमें विवरण देते हुए, कहा की स्वामी विवेकानन्द द्वारा कहा गया ॐ का मंदिर -मिलन स्थलमें हम सहभागिता लेते हुए समाज को संगठीत करे और सकारत्मक समाज बनायें, उन्होंने  लोगो को प्रार्थना, योग, स्वाध्याय प्रवृतिमें भाग लेने हेतु आमंत्रित करते हुए "भगिनि निवेदीता पुस्तकालय" और केन्द्र मे चल रहे आनन्दालय, (play way learning) के बारे में जानकारी दी।

अंत मे विवेकानन्द केन्द्र शिमला शाखा के नगर संचालक श्री तेजराम शर्मा जी ने धन्यावाद प्रस्ताव तथा विश्व कल्याण की प्रार्थना के साथ कार्यक्रम का समापन किया।


गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

वैचारिक गोष्ठी : "आदर्श समाज व्यवस्था"


विवेकानन्द केन्द्र शिमला शाखा द्वारा वैचारिक गोष्ठी : "आदर्श समाज व्यवस्था" का रविवार, ७-अप्रैल-२०१३ को आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत ३ ॐकार एवं प्रार्थना के साथ हुई। स्वाध्याय वर्ग प्रमुख श्री धर्मेन्द्रकुमारजी द्वारा "धर्म के लिए जिए, समाज के लिए जिए" गीत, उपस्थित सभी द्वारा दोहराया गया ।

विवेकानन्द केन्द्र शिमला शाखा के नगर संगठक श्री हार्दिकजी ने विवेकानन्द केन्द्र की देश में चल रही गतिविधी के बारे बताते हुए, वर्षभर चलने वाले स्वामी विवेकानन्द सार्ध शती समारोह के बारे में अवगत कराते हुए, सभी को इस समाज नवोत्थान के कार्य में सम्मिलित होने कि अपील की। विवेकानन्द केन्द्र के जीवनव्रती कार्यकर्ता श्रीमती कल्पनाजी द्वारा माननीय रेखादीदी के परिचय के बाद, सभी उपस्थित कार्यकर्ता एवं परिपोषको का सभी से परिचय हुआ।

माननीय रेखादीदीजी ने गोष्ठी की शुरुआत करते हुए कहा कि हमारा समाज, पुरातन संकल्पना-व्यवस्था से चला आ रहा है जिसमें व्यक्तिको, समाजको, विकास के लिए चिजें आसानी से उपलब्ध रही है  मगर पिछले कुछ २०० वर्षोसे अंग्रेजोकी राजनितिक परतंत्रताके कारण चरमरा गया है, उसको हम केवल मनुष्य निर्माण - राष्ट्र पुन:रुत्थान द्वारा ही वापस ला सकते हैं। और यह चरित्र निर्माण केवल भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए आवश्यक है। गोष्ठी के मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार रहे।

  • स्वामीजी का विश्व प्रसिध्ध भाषण "अमेरीकावासी बहनों और भाईओं" भावात्मक एकता "वसुधैव कुटुंम्बकम्" का संदेश - वेदांत का संदेश है।
  • आदर्श समाज व्यवस्था के लिए हमे अपनी संस्कृतिको सही रुपसे पहचानना होगा।
  • संस्कारकी शुरुआत परिवार से होती है, और परिवार समाज से, समाज राष्ट्रसे जुडा हुआ है।
  • हम समाज - राष्ट्रके लिए कुछ समय अवश्यही निकाले। केन्द्र प्रार्थनामें "जीवने यावदादानं.." यह बताती है कि हम कितना दे सके। सिर्फ लेके की भावना नही।
  • सूचना से मनुष्य नहीं बनता। यह हमें अपने घरमेंसे अनौपचारिक रूपसे सिखाना है। स्वधर्म का पालन करना है ।
  • जो कुछभी बनो - अच्छा बनो, "जीवने यावदादानं.." की संकल्पना हमेशा अपने सामने रखनी है।
  • विदेशोका अन्धानुकरण के बदले गीता-उपनिषद, संस्कृत का अभ्यास करके स्वय़ंको जाने, अपनी संस्कृति पहचानने की आवश्यक्त है।
  • आजका "development" विनाशात्मक दृष्टीसे हो रहा है, जंगलो का विनाश, पर्यावरण का विनाश।
  • गीता युध्धभूमि में कही गई है, श्रीकृष्णने अर्जुनको तैयार किया था, वैसे आज हमें हमारे युवाऒको तैयार करने के लिए प्रयत्न करना है, युवाओंको विदेशी ताकात से लडनें के लिए तैयार करना है, आजके सांस्कृतिक आक्रमण द्वारा भारतका युवाधन खतम होने से बचाना है।
  • गीता for management, जैसे विषय पर बाहर के लोग गहराई से समझ रहे है, और हमें सबकुछ जल्दी-जल्दी चाहिए|


गोष्ठी के समापन करते हुए माननीय रेखादीदीजी ने कहा, समह मिलता नही पर समय निकालना पडेंगा, अपने लिए, अपने समाज के लिए।  "जीवने यावदादानं स्यात् प्रदानं ततोऽधिकम्" - यही उपाय है, समाज के लिये समय दे तभी आदर्श समाज व्यवस्था पुन:स्थापित हो सकेगी।

श्री आशुतोषजी, सहसंयोजक शिमला नगर ने आभार व्यक्त करते हुए सभी को समाजकार्य में सम्मिलित होने का आहवान किया। कार्यक्रमका संचालन शिमला नगर सहसंयोजक श्री सुभाषजी ने किया।